देश के सबसे ज्यादा लॉकडाउन देखने वाले कश्मीर की आपबीती- बुलेटिन पूरा भी नहीं होता था कि अब्बा हाथ में झोला लेकर निकल जाते थे - RRV E-News Paper

Breaking

Wednesday, April 8, 2020

देश के सबसे ज्यादा लॉकडाउन देखने वाले कश्मीर की आपबीती- बुलेटिन पूरा भी नहीं होता था कि अब्बा हाथ में झोला लेकर निकल जाते थे

मुझे अपना बचपन याद आता है जब दिसंबर में रेडियो पर खबर सुनकर हमारी सुबह होती थीं। अनाउंसर खराब मौसम की खबर सुना रहा होता था और यह चेतावनी भी कि भारी बर्फबारी हुई तो जम्मू-श्रीनगर हाईवे बंद हो जाएगा। यानी घाटी को बाकी दुनिया से जोड़ने वाला रास्ता बंद। इसका मतलब होता जरूरी सामान की किल्लत होने वाली है। बुलेटिन पूरा भी नहीं होता था कि मेरे अब्बा हाथ में कपड़े से बना झोला लिए निकल जाते थे और लौटते थे सब्जियां, लोकल ब्रेड और बड़ी वाली रेडियो की बैट्री लिए। मां जल्दी-जल्दी पुरानी लकड़ियां, गैस लालटेन और बर्फ में पहनने वाले रबर बूट्स से धूल साफ करने लगतीं।

अगली सुबह हम उठते तो हमारी पूरी दुनिया सफेद हो चुकी होती थी। नलों पर गर्म पानी डालकर हम बाथरूम इस्तेमाल कर पाते थे। अब्बू रबर बूट्स पहनकर बर्फ के बीच घर से बाहर निकलने का रास्ता बनाते थे। अगले दो-तीन दिन बस हमाम में बैठकर खाना-पीना और रेडियो पर बुलेटिन सुनने का ही काम होता था। कश्मीर के सबसे सर्द चिल्ले कलां के दिन हम यूं ही गुजारते थे। ये हमारा सर्दियों वाला लॉकडाउन हुआ करता था।

कश्मीर में सबसे ज्यादा सर्दी वाले 40 दिन चिल्ले कलां कहलाते हैं। दिसंबर जनवरी के ये वह दिन होते हैं, जब नलों में पानी जम जाता है और आसपास की वादियां बर्फ से ढंक जाती हैं।

मुझे नहीं पता था बर्फबारी के कुछ दिन वाली यह सर्वाइवल टेक्नीक हमें महीनों चलने वाले लॉकडाउन के लिए जीना सिखा देंगी। पैदा हुई हूं तब से लेकर अब तक के 25 सालों में कई बड़े लॉकडाउन और एक भयानक बाढ़ की गवाह बनी हूं। 2008 में अमरनाथ श्राइन बोर्ड के भूमि विवाद से लेकर 2010 के लंबे कर्फ्यू तक... अफजल गुरू को फांसी होने के बाद 2014 फरवरी में हड़तालों के उस दौर से लेकर सितंबर में उसी साल आए सैलाब तक...फिर 2016 में बुरहान वानी के एनकाउंटर से लेकर 2019 में धारा 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर के स्पेशल स्टेटस के खो जाने तक कई लॉकडाउन देखें हैं।

अब हम एक और अजाब झेलने को मजबूर हैं, यह पुराने सारे लॉकडाउन से अलग है। पहली बार किसी महामारी के चलते ऐसा लॉकडाउन देखा है। नई बात यह भी है कि कश्मीर के साथ-साथ इस बार पूरा देश लॉकडाउन है। हम कश्मीरियों से इन दिनों एक सवाल बार-बार पूछा जा रहा है कि आखिर हम इन पाबंदियां में कैसे रह पाते हैं? और इसका जवाब हम ठीक वैसे ही देते हैं जैसे मैंने ऊपर दिया है। ऐसे ही लॉकडाउन के बीच जीने के कुछ और तरीके नीचे भी लिखे हैं…

इस अजाब से पहले पिछले साल जुलाई में जब टूरिस्ट सीजन चल रहा था तो अचानक एक ऐसे लॉकडाउन की चर्चा सोशल मीडिया पर होने लगी, जिसने घाटी की चिंता अचानक बढ़ा दी। तूफान के तर्ज पर उस लॉकडाउन से निपटने की तैयारी होने लगी।

मेरी मां ने हमारे स्टोर रूम में ग्रॉसरी इकट्ठा कर ली। बीमार दादी की दवाइयों के कई पैकेट तुरंत मंगवाए गए। कार का टैंक फिर एक बार फुल हुआ और एटीएम से भरपूर कैश भी निकाल लिया गया। अभी अगस्त आने में थोड़ा वक्त बाकी था, लेकिन जब अगस्त आया तो सबकी बैचेनी और बढ़ चुकी थी।

5 अगस्त की सुबह आम दिनों के मुकाबले थोड़ी गर्म थी, जब हम सोकर उठे तो देखा कि इंटरनेट और फोन बंद है। मोबाइल की स्क्रीन पर सिग्नल की सीधी डंडियों की जगह क्रॉस का निशान नजर आ रहा था। अनुभवों के आधार पर मैंने अनुमान लगा लिया था कि ये हाल कम से कम 15 अगस्त तक चलेगा ही। हालांकि यह बड़ा लंबा चला।

श्रीनगर का ऐतिहासिक लालचौक वैसे तो शहर का बिजनस हब है लेकिन घाटी की किसी भी परिस्थिति का पहला असर इसी इलाके में नजर आता है। लॉकडाउन लगते ही सुरक्षाबल सबसे पहले इसे कंटेनजिना वायर से लपेट अपनी जद में ले लेते हैं। राजनीतिक लिहाज से ये कश्मीर में खास अहमियत भी रखता है।

उस दौर में हमारा ज्यादातर वक्त किताबों के साथ बीतता था। मैं सुबह घर के किचन गार्डन में बाबा की मदद करती फिर काहवा पीते हुए टीवी पर खबरें सुनती। सड़कें सूनी थीं और बाजार बेजान। शाम को कुछ वक्त सिक्योरिटी डिप्लॉयमेंट हटने के बाद पड़ोस के किराने वाले से जरूरी सामान खरीदने का मौका मिलता था।

बेपनाह बर्फ इस बार इस बेजारी से राहत लेकर आई। हालांकि इससे मेरे बगीचे के सभी फूल और पेड़ टूट गए थे और मुझे घर में हफ्ते भर की कैद भी मिली थी। और तो और बिजली भी लुकाछुपी खेल रही थी।

लॉकडाउन सबसे ज्यादा दिक्कतें मरीजों और उनके परिवार वालों को होती है। हमारे हमसाये के अब्बा कैंसर पेशेंट हैं। उन्हें जैसे ही पता चलता कि हालात खराब होने को हैं तो वे गली के कोने पर रहनेवाले एम्बुलेंस ड्राइवर को फोन करते और पूछ लेते कि वह घर पर ही है ना? यही नहीं वह सबसे पहले डीसी ऑफिस जाकर एक कर्फ्यू पास लेकर आते और लौटते वक्त डॉक्टर से मिलते हुए आते। ये वह पिछले दो सालों से हर लॉकडाउन के दौरान कर रहे हैं।

मैंने ये महसूस किया है कि मुश्किल आती हैं तो उनके हल भी निकलने लगते हैं। हम अपने तरीकों से रास्ता निकाल लेते हैं। जिंदगी की इस बेहद कठिन परीक्षा में भी हम पास होंगे। फिर चाहे ये लॉकडाउन कितना ही बड़ा हो। हमें अपने तरीकों से इससे पार पाना होगा।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
कश्मीर को देश से जोड़ता यह नेशनल हाईवे एनएच वन है। इसी पर बनी जवाहर टनल के उस पार जम्मू है और दूसरी ओर कश्मीर। बर्फबारी में कई बार यह बंद हो जाता है। पूरी सर्दियां इस पर वन वे ट्रैफिक रहता है। एक दिन जम्मू से श्रीनगर गाड़ियां जाती हैं तो दूसरे दिन श्रीनगर से जम्मू।


from Dainik Bhaskar /db-original/news/kashmirs-most-obsessed-lockdown-the-bulletin-of-kashmir-was-not-complete-that-abba-would-leave-with-a-bag-in-his-hand-127125509.html

No comments:

Post a Comment

if you have any doubts, Please let me know

Best Regards
Mr RV

'Situation Turning Worse', Says Centre As India Records 56,211 COVID-19 Cases On Tuesday; Lists 7 Strategies To Control Situation

<p><strong>New Delhi:&nbsp;</strong>On Tuesday the Centre wrote to various states and Union Territories because there ...

Pages